मेरे मित्र

Monday, June 17, 2013

साथ

कल तक
चारों और
बस निराशा और बस अन्धकार
कुछ न करने की चाह
जीवन से विरक्ति
खाली हाँथ
खाली मन
और
खाली मस्तिष्क
लिए मैं
अपनी ही गलतियों के परिणाम
ढो रही थी .........
शायद तुम न समझ सको
पर तुम्हारा न होना
मेरा ना होना है ,
खुद को खो देने जैसा .......

फिर अचानक क्या हुआ की
आज फिर
खुद को ,
हिमालय के शिखर पर
पाती हूँ मैं ,
विजय ध्वज लहराते हुए ,
उल्लासित ह्रदय से ,

क्यूंकि
तुम अब साथ हो मेरे |

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