कितना आसन था
तुम्हारी प्रेमिका बन जाना ,
कितनी अतिशयोक्तिया सुनी थी मैंने
अपने लिए
कभी भी कहीं भी
सुनने में आ ही जाता था ,
मैं ऐसी हूँ
मैं वैसी हूँ
प्रेम की मूर्ती ,
दया की देवी ,
ममत्व से भरी एक लड़की ,
जो बस सुख ही प्रदान करती थी ,
लोगों के चेहरों को मुस्कान से भरा करती थी ,
तुम्हारी इतनी परवाह
तो कभी किसी ने की ही नहीं
जितनी मैंने की
माँ से अधिक भोजन मैंने कराया ,
बहन से अधिक स्नेह मैंने दिया ,
पिता से अधिक सुरछित तुम मेरे साथ महसूस करते थे,
और दोस्तों से अधिक तब मेरा दम भरते थे |
फिर क्या हुआ आज
मैं आज भी वही हूँ
समाज के कलुषित वातावरण से लड़ने वाली ,
हर नंगे बदन पर अपने दुपट्टे से छाव करने वाली ,
हर बच्चे को गोद में उठा स्नेह करने वाली ,
हाँ कुछ बदला है तो समय
जहाँ छली गयी मैं
कुछ ऐसे ही बच्चों से
जिन्हें ममता बांटने में ,
मैं खुद ही बंट गयी |
हाँ वहीँ हूँ मैं बस छली हुयी ,
और आज मेरे लिए की तुम्हारी सारी अतिशयोक्तियाँ ,
पलट गयी हैं
अब मैं वो माँ हूँ
जो अपने बच्चे की न हो सकी ,
अब मैं वो लड़की हूँ
समाज की कलुषताओं को न धो सकी,
अब मैं एक खंडित मूर्ती हूँ
क्यूंकि अब मैं प्रेमिका नहीं
पत्नी हूँ |