मेरे मित्र

Monday, May 13, 2013

ऊर्जा

मुझे परिवर्तित करने में
निरंतर लग्न हो तुम ,
कभी मेरी हंसी को ,
कभी मेरी बोली को ,
कभी मेरे वाद विवाद को ,
कभी मेरे ह्रदय के सुख और विषाद को ,
मेरे पहनने के ढंग को ,
मेरे चेहरे के रंग को ,
मेरे गाये राग को ,
तुझसे किये गए मेरे हर संवाद को ,

कितनी ऊर्जा है तुममे ,
तुम खुद को शाश्वत बनाने की प्रकिया छोड़ ,
संलग्न हो
मुझे परिवर्तित करने में|

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