मेरे मित्र

Thursday, May 2, 2013

माँ


माँ किसी चेहरे का नाम नहीं ,
माँ तो वो है जिसे आराम नहीं ,
कभी रोटी से लिपट जाती है चटनी की तरह ,
और कभी मुझको झिड़कने के सिवा , 
उसके पास कोई और काम नहीं.................
बस सुबह उठ के चिडचिडाना शुरू करती है ,
सुबह उठता क्यूँ नहीं कह के मुझसे लड़ती है ,
लंच देती है मुझे बस्ता सही करती है, 
मेरी हर बात पे वो रोक टोक करती है ,
हाँथ में झाड़ू लिए दिन दिन भर वो ,
मेरा फैलाये हुए घर को साफ़ करती है ,
और जब शाम को आते है हमारे पापा ,
"क्या किया करती हो दिन भर ?" ये सुना करती है ,
हाँ माँ किसी चेहरे का नाम नहीं
वो तो वो है जिसे आराम नहीं.............................
रोज का सिर्फ यही ढर्रा है,
उनको तो टुन्न फुन्न करना है
कभी बस्ते की किताबों के लिए ,
कभी पढ़ने के रिवाजों के लिए ,
कभी मेरे सब्जी नहीं खाने के लिए ,
और कभी दूध बचाने के लिए,
कभी कहती है की सारा दिन मैं घर में रहता हूँ ,
कभी कहती हैं शनि पैर में है एक पल घर में नहीं रहता हूँ ,
कभी लगता है छोड़ छाड़ के सब भाग जाऊं,
पर मुझे याद फिर आ जाता है,
माँ किसी चेहरे का नाम नहीं,
माँ तो वो है जिसे आराम नहीं |


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