मेरे मित्र

Friday, May 10, 2013

मीरा

फिर नए लब्बों लबाबों से घिरी जाती हूँ मैं ,
फिर तुम्हारे प्यार में दर दर फिरी जाती हूँ मैं

राधिका सी है नहीं किस्मत की पा लूं मैं तुम्हे ,
इसलिए मीरा सी बन कर विष पिए जाती हूँ मैं |

सोचना फिर तुम परख कर देखना एक बार फिर ,
दर्द के एहसास लेकर सुख दिए जाती हूँ मैं |

एक वो दिन था की तुमको देखती थी रोज़ मैं ,
एक दिन है आज का तुझ बिन जिए जाती हूँ मैं |

फिर नए उन्वान हैं और फिर नए आगाज़ भी हैं ,
खोल सांकल कैद की सपने लिए जाती हूँ मैं |

दौर है कुछ इस तरह का हर कोई भगवान् है ,
इसलिए इंसान बन कर अब जिए जाती हूँ मैं |


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