मेरे मित्र

Sunday, May 12, 2013

वो नयी दुल्हन |

अपने घुटनों को
अपने पेट में छिपाए ,
सर अपनी छाती से लगाये ,
एक पुराने से कमरे में ,
नए कपड़ों में सजी
नए भावों से बंधी ,
वो
कभी मुस्कुराती ,
कभी शर्माती ,
कभी किसी के आने पर और
सिमट जाती ,
कभी जीवन के इस बदलाव के भय से ,
अपने पिता की याद में गुम हो जाती
वो नयी दुल्हन |
कल अपना आँगन छोड़ते ही
अपना लिया मेरा आँगन ,
अपने कमरे की साज सज्जा
से जयादा उसे भाई ,
मेरे कमरे की अस्तव्यस्तता ,
एक रात ही तो गुज़री थी ,
मैं समझ ही न सका
कौन है वो , कैसी है वो ,
क्या भाता है उसे ,
कौन रिझाता है उसे ,
पर अगले दिन सुबह
मेरी पसंद का नाश्ता बनाती ,
वो नयी दुल्हन |
 

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