मेरे मित्र

Friday, May 10, 2013

चाँद में रोटी

रच रही हूँ अपने ही हांथों नया आकाश देखो ,
और फिर उड़ने की चाहत का मेरा आगाज़ देखो |
श्वेत सुन्दर और चमकीला अनन्त असीम है जो ,
आज मेरे स्वप्न में परियों का ऐसा चाँद देखो |
फिर नए मुक्तक सुनाती ज़िन्दगी खुश सी लगी थी ,
पर ज़रा झांको ह्रदय में गम का वो सैलाब देखो |
कल बहुत सी रोटियां फेंकी थी हमने बच गयी थी ,
जिनको दिखती चाँद में रोटी उन्हें इकबार देखो |
स्वप्न लाखों के करोड़ों में हैं बिकते आज कल पर  ,
एक नंगे से बदन का बिक रहा सम्मान देखो |

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