मेरे मित्र

Thursday, May 9, 2013

अब मैं पत्नी हूँ

कितना आसन था 
तुम्हारी प्रेमिका बन जाना ,
कितनी अतिशयोक्तिया सुनी थी मैंने 
अपने लिए 
कभी भी कहीं भी 
सुनने में आ ही जाता था ,
मैं ऐसी हूँ 
मैं वैसी हूँ 
प्रेम की मूर्ती ,
दया की देवी ,
ममत्व से भरी एक लड़की ,
जो बस सुख ही प्रदान करती थी ,
लोगों के चेहरों को मुस्कान से भरा करती थी ,
तुम्हारी इतनी परवाह
तो कभी किसी ने की ही नहीं
जितनी मैंने की 
माँ से अधिक भोजन मैंने कराया ,
बहन से अधिक स्नेह मैंने दिया ,
पिता से अधिक सुरछित तुम मेरे साथ महसूस करते थे,
और दोस्तों से अधिक तब मेरा दम भरते थे |
फिर क्या हुआ आज 
मैं आज भी वही हूँ 
समाज के कलुषित वातावरण से लड़ने वाली ,
हर नंगे बदन पर अपने दुपट्टे से छाव करने वाली ,
हर बच्चे को गोद में उठा स्नेह करने वाली ,
हाँ कुछ बदला है तो समय 
जहाँ छली गयी मैं 
कुछ ऐसे ही बच्चों से 
जिन्हें ममता बांटने में ,
मैं खुद ही बंट गयी |
हाँ वहीँ हूँ मैं बस छली हुयी ,
और आज मेरे लिए की तुम्हारी सारी अतिशयोक्तियाँ ,
पलट गयी हैं 
अब मैं वो माँ हूँ 
जो अपने बच्चे की न हो सकी ,
अब मैं वो लड़की हूँ 
समाज की कलुषताओं को न धो सकी,
अब मैं एक खंडित मूर्ती हूँ  
क्यूंकि अब मैं प्रेमिका नहीं 
पत्नी हूँ |

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