कैसे दूं मैं परिचय अपना ,
मैं ईश्वर की अनमोल कृति ,
जानी जाती हूँ मैं उससे ,
मैं उसकी पारस रूप निधि ,
मैं हूँ गंगा , मैं ही जमुना ,
मैं सरस्वती अन्मुखरित सी ,
मैं ब्रह्म ज्ञान की ज्ञानी और
शिव योगी की पटरानी सी ,
मैं प्रातः का पहला कलरव ,
मैं गोधूली की प्रथम धूल ,
मैं राधा का संयोग और ,
मीरा के मन में बसा मूल ,
तुलसी की रामायण हूँ मैं ,
मैं ही कबीर का निर्गुण हूँ ,
रसखान के रस की खान हूँ मैं ,
मैं चिंतन मनन समर्पण हूँ ,
मुझमे ही बसता है नटखट ,
जो जग में पूजा जाता है ,
जग ढूँढता फिरता है जिसको ,
मेरा मन खुद में पाता है ||