मेरे मित्र

Monday, April 29, 2013

परिचय

कैसे दूं मैं परिचय अपना ,
मैं ईश्वर की अनमोल कृति , 
जानी जाती हूँ मैं उससे ,
मैं उसकी पारस रूप निधि ,
मैं हूँ गंगा , मैं ही जमुना ,
मैं सरस्वती अन्मुखरित सी ,
मैं ब्रह्म ज्ञान की ज्ञानी और 
शिव योगी की पटरानी सी ,
मैं प्रातः का पहला कलरव ,
मैं गोधूली की प्रथम धूल ,
मैं राधा का संयोग और ,
मीरा के मन में बसा मूल ,
तुलसी की रामायण हूँ मैं ,
मैं ही कबीर का निर्गुण हूँ ,
रसखान के रस की खान हूँ मैं ,
मैं चिंतन मनन समर्पण हूँ ,
मुझमे ही बसता है नटखट ,
जो जग में पूजा जाता है ,
जग ढूँढता फिरता है जिसको ,
मेरा मन खुद में पाता है ||  

टूटता तारा

आँखें बंद थी ,
अधर मौन थे ,
ह्रदय अशांत था ,
और मैं स्तब्ध
घर की छत पर
कर रही थी इंतज़ार 
टूटते तारे का ,
जिसके आगे तोड़ देती मैं 
बरसों से बांधें उस बांध को ,
जो पहले अधरों पर था ,
शब्द फूट न सके ,
फिर नयनों पर था ,
आंसू छूट न सके ,
और न जाने कब और कैसे ,
ह्रदय पर भी बंध गया ,
अचानक टूटा तारा ,
और टूट गयी मैं भी उसके साथ ,
फिर तुम्हे मांगने को |

आह

तनहाइयों का दर्द 
तुम क्या जानो ,
तुमने तो हर बार ,
एक से अलग होने से पहले ,
दुसरे को ढूंढ लिया था ,
और किसी को फर्क भी न पड़ा था 
तुम्हारे ऐसे होने से ,
क्योंकि आइना बीच में था ,
और तुम्हारे तत्कालीन अक्स भी 
वैसे ही थे जैसे
तुम |
पर अब तुम्हे मालूम होगा 
आह का मतलब 
जो किसी की तन्हाई से निकल 
तेरी भीड़ भरी दुनिया से 
तुझे छीन ,
दे देगी तुझे भी 
अकेलेपन की आग |

Sunday, April 28, 2013

भ्रूण हत्या

अभी तो प्रगाश ने ,
अपनी तन्द्रा तोड़ी ही थी ,
निद्रा की चादर से 
रिश्तेदारी छोड़ी ही थी ,
अल्ला हू
अल्ला हू
की अजान
लबों से जोड़ी ही थी .............
१२ में जन्में प्रगाश का प्रकाश 
१३ में अन्धकार में 
कैसी है ये नियति 
कैसा है ये फैसला 
रिवाजों का 
रीतियों का 
या फिर
रूढ़ियों का,
जिन्होंने हमेशा भेद किया है 
स्त्री और पुरुष में ,
आज फिर दिखाई दिया है ,
भेद .......
जिसने प्रगाश की तीनो बालाओं की 
कर दी है भ्रूण हत्या
पहली करवट के साथ ही |

जख्म