जिस्म को
अब कोई एहसास तक नहीं होता है ,
न छुअन का ,
न चुभन का ,
न विरह का,
न मिलन का ,
मेरे जख्मों को
कुरेदा है किसी ने इतना ,
खून रिस रिस के बहा
चार पांच जन्मो तक |
अब तो बस सुन्न है ,
तन भी हमारे मन की तरह |
अब कोई एहसास तक नहीं होता है ,
न छुअन का ,
न चुभन का ,
न विरह का,
न मिलन का ,
मेरे जख्मों को
कुरेदा है किसी ने इतना ,
खून रिस रिस के बहा
चार पांच जन्मो तक |
अब तो बस सुन्न है ,
तन भी हमारे मन की तरह |
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