आँखें बंद थी ,
अधर मौन थे ,
ह्रदय अशांत था ,
और मैं स्तब्ध
घर की छत पर
कर रही थी इंतज़ार
टूटते तारे का ,
जिसके आगे तोड़ देती मैं
बरसों से बांधें उस बांध को ,
जो पहले अधरों पर था ,
शब्द फूट न सके ,
फिर नयनों पर था ,
आंसू छूट न सके ,
और न जाने कब और कैसे ,
ह्रदय पर भी बंध गया ,
अचानक टूटा तारा ,
और टूट गयी मैं भी उसके साथ ,
फिर तुम्हे मांगने को |
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