मेरे मित्र

Thursday, May 2, 2013

क्षितिज

छोटे  छोटे  कदमों  से  हम  नापते  थे  आकाश  का  कद ,
डग  थे  छोटे  मगर  सदा  था मेरे  विश्वासों  में  दम |
लगता  था  चोटी  पर  जा  कर  परचम  लहरा  दूं  अपना ,

और  सत्य  कर  डालूँ  अपनी  आँखों  में  बसता जो  सपना ,
कोई  रोक  न  पाया  मुझको , था  न  इरादों  में  कुछ  कम ,

डग  थे  छोटे  मगर  सदा  था 
मेरे  विश्वासों  में  दम|
धरती  अपनी  सी  लगती  थी  , आसमान  को  ओढ़े  थी ,
फूलों  से  थी  दोस्ती  अपनी , तितलियों  संग  खेली  थी ,

सबको  अपना  ही  कहती  थी  , ऐसा  था  ये  भोला  मन ,

डग  थे  छोटे  मगर  सदा  था 
मेरे  विश्वासों  में  दम|

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