चूरन की चटपट , अमरक की करछाहट याद आती है ,
जब बचपन गुम हो जाता है याद उसी की आती है ............
नन्हे हांथों में होता था बस्ता खुद से भी भारी,
फिर भी पैदल ही जाते थे , करते थे हम शैतानी ,
रोज़ लडाई मारा पीटी गुत्थम गुत्था होती थी ,
लड़ कर जब रोती थी सहेली , खुद की भी आँखे रोती थी ,
खो खो का वो खेल याद है , जबरन धक्का देते थे ,
आउट करने के चक्कर में घंटो दौड़ा देते थे ,
बाबा जी के बैस्कोपे की याद कहानी आती है ,
इमली की सी खट्टी यादें , भेल पूरी तरसाती है
चूरन की चटपट , अमरक की करछाहट याद आती है ,
जब बचपन गुम हो जाता है याद उसी की आती है |............
बचपन के वो यार दोस्त जिनसे लड़ते ही बीता पल ,
याद बुढ़ापे में आते हैं , मन होता है फिर बेकल ,
लौट के जब उस गली से गुज़रें , आंसू की लहर सी आती है ,
कैथे की कडवाहट भी तब मीठी सी हो जाती है ,
चूरन की चटपट , अमरक की करछाहट याद आती है ,
जब बचपन गुम हो जाता है याद उसी की आती है ............
जब बचपन गुम हो जाता है याद उसी की आती है ............
नन्हे हांथों में होता था बस्ता खुद से भी भारी,
फिर भी पैदल ही जाते थे , करते थे हम शैतानी ,
रोज़ लडाई मारा पीटी गुत्थम गुत्था होती थी ,
लड़ कर जब रोती थी सहेली , खुद की भी आँखे रोती थी ,
खो खो का वो खेल याद है , जबरन धक्का देते थे ,
आउट करने के चक्कर में घंटो दौड़ा देते थे ,
बाबा जी के बैस्कोपे की याद कहानी आती है ,
इमली की सी खट्टी यादें , भेल पूरी तरसाती है
चूरन की चटपट , अमरक की करछाहट याद आती है ,
जब बचपन गुम हो जाता है याद उसी की आती है |............
बचपन के वो यार दोस्त जिनसे लड़ते ही बीता पल ,
याद बुढ़ापे में आते हैं , मन होता है फिर बेकल ,
लौट के जब उस गली से गुज़रें , आंसू की लहर सी आती है ,
कैथे की कडवाहट भी तब मीठी सी हो जाती है ,
चूरन की चटपट , अमरक की करछाहट याद आती है ,
जब बचपन गुम हो जाता है याद उसी की आती है ............
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