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Thursday, May 2, 2013

यादें

चूरन  की  चटपट , अमरक  की  करछाहट याद  आती  है ,
जब  बचपन  गुम हो  जाता  है  याद  उसी  की  आती  है ............

नन्हे  हांथों  में  होता  था  बस्ता  खुद  से  भी  भारी,
फिर  भी  पैदल  ही  जाते  थे , करते  थे  हम  शैतानी ,
रोज़  लडाई  मारा  पीटी  गुत्थम  गुत्था  होती  थी ,
लड़  कर  जब  रोती  थी  सहेली , खुद  की  भी  आँखे  रोती  थी ,
खो  खो  का  वो  खेल  याद  है , जबरन  धक्का  देते  थे ,
आउट  करने  के  चक्कर  में  घंटो  दौड़ा  देते  थे ,

बाबा  जी  के  बैस्कोपे  की  याद  कहानी  आती  है ,
इमली  की  सी  खट्टी  यादें  , भेल  पूरी  तरसाती  है

चूरन  की  चटपट , अमरक  की  करछाहट  याद  आती  है ,
जब  बचपन  गुम  हो  जाता  है  याद  उसी  की  आती  है |............



बचपन  के  वो  यार  दोस्त  जिनसे  लड़ते  ही  बीता  पल ,
याद बुढ़ापे  में  आते  हैं  , मन  होता  है  फिर  बेकल ,
लौट  के  जब  उस  गली  से  गुज़रें  , आंसू  की  लहर  सी  आती  है ,
कैथे  की  कडवाहट  भी  तब  मीठी  सी  हो  जाती  है ,

चूरन  की  चटपट , अमरक  की  करछाहट याद  आती  है ,
जब  बचपन  गुम  हो  जाता  है  याद  उसी  की  आती  है ............

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